सम्पादक की कलम से पलायन और खतरा

कोरोना महामारी से निपटने के लिए देशव्यापी पूर्ण बंदी जैसे जरूरी कदम से निश्चित ही आमजन को भारी मुश्किलों का सामना तो करना पड़ रहा है, लेकिन इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए कि आज हम जिस गंभीर संकट से रू-ब-रू हो रहे हैं, उसमें ऐसा करना अपरिहार्य हो गया था। भारत के अलग-अलग हिस्सों में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या रोजाना जिस तरह बढ़ रही है, वह चिंताजनक है। जिस तरह से राजधानी दिल्ली सहित अन्य राज्यों में पलायन करने वालों की भीड़ दिखी, वह एक गंभीर खतरे की ओर संकेत कर रही है। अगर इस भीड़ से यह महामारी देश के दूसरे हिस्सों में फैल गई तो क्या होगा ! इस वक्त लोगों को यह समझने की जरूरत है कि वे जहां हैं, वहीं रुकें, ताकि कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोका जा सके।


कोरोना वायरस की प्रकृति जिस तेजी से फैलने की है, उससे साफ है कि इसकी चपेट में आने वाला एक व्यक्ति बहुत ही आसानी से हजारों लोगों तक यह संक्रमण फैला सकता है। लाखों लोगों का इस तरह पलायन पूर्ण बंदी के मकसद पर पानी फेर सकता है। इसीलिए केंद्र सरकार को सख्ती दिखाते हुए सभी राज्यों से यह कहने को मजबूर होना पड़ा है कि पूर्ण बंदी के मकसद को हासिल करने के लिए कड़े से कड़े कदम उठाए जाएं और जो जहां है, उसे वहीं रखा जाए और जांच की जाए। लोगों के पलायन को रोकने के लिए राज्यों ने अपने स्तर पर जो कदम उठाए हैं, वे सराहनीय हैं। पंजाब सरकार ने ईंट-भट्ठ सहित कुछ उद्योगों को काम शुरू करने की इजाजत दी है, ताकि मजदूरों को वहीं रोका जा सके। दिल्ली सरकार ने ऐसे सभी कामगारों और मजदूरों को दिल्ली में ही रोकने के लिए उनके रहने-खाने का बंदोबस्त किया है, जो लोग किराया दे पाने में अक्षम हैं, उनके घर का किराया दिल्ली सरकार खुद देने की बात कही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी बाहर से आए मजदूरों के लिए सभी सुविधाएं मुहैया कराई हैं। इन्हें अलग रख कर इनकी जांच भी कराई जाएगी। बड़ी समस्या यह है कि यह तबका कोरोना फैलने के खतरों को लेकर जागरूक नहीं है। पलायन रोकने को लेकर केंद्र सरकार अबसख्त रुख अपना रही है। राज्यों को भी सख्ती बरतने को कहा गया है। इसलिए राज्य सरकारों ने लोगों को वहीं रोकने का फैसला किया है जहां वे हैं। उन्हें अब पूर्ण बंदी तक वहीं रोका जाएगा और हरेक की जांच की जाएगी। हालांकि यह बहुत ही मुश्किल कवायद है, लेकिन इसे करना जरूरी है। सरकार, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) और चिकित्सा विशेषज्ञ सब इस बात पर शुरू से जोर देते रहे हैं कि जांच और उपचार से पहले इस महामारी से बचाव का पहला उपाय यही है कि लोग दूर रहें। ऐसे में अगर लाखों की संख्या में लोग देश में एक हिस्से से दूसरे में चले गए, तो यह महामारी गांवों में तेजी से फैल जाएगी और इससे निपटना एक तरह से असंभव हो जाएगा। गांवों में कोरोना की जांच तो दूर, सामान्य बीमारियों के इलाज तक के लिए सुविधाएं नहीं होती और गंभीर स्थिति में लोग शहरों की ओर ही भागते हैं। पूर्ण बंदी जैसा कदम तकलीफदेह जरूर हो सकता है, लेकिन कुछ समय की यह तकलीफ बड़ी संख्या में लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचा सकती है, इस बात को समझने की जरूरत है।